उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की बेटी पूजा ने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर Inspire Award MANAK जीतकर न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि जिले और देश का नाम रोशन किया है। पूजा का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी और आज वह लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
पूजा कौन हैं?
पूरा नाम: पूजा पाल
गांव: अगेहरा, तहसील सिरौलीगौसपुर, जिला बाराबंकी
परिवार: पिता दिहाड़ी मजदूर, मां सरकारी स्कूल में रसोईया
शिक्षा: जगदीशचंद्र फतेहराय इंटर कॉलेज, वर्तमान में कक्षा 12वीं की छात्रा
बाराबंकी की पूजा: संघर्ष, परिश्रम और सपनों की उड़ान
मेरी आवाज़, मेरी कहानी
झोपड़ी की चादर के नीचे, बारिश की बूँदों की टपकती आवाज़ के बीच मैंने अपने बचपन में कई बार देखा—मेरी माँ मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाती, पापा सुबह होने से पहले ही काम पर निकल जाते। मेरा घर साधारण था, लेकिन मेरे सपने कभी साधारण नहीं रहे। मैं पूजा हूँ, बाराबंकी के अगेहरा गाँव की एक लड़की, जिसने बड़ा सपना देखा और उसे पूरा करने की ठान ली।
बचपन का संघर्ष
छोटा सा हमारा घर—पन्नी और घास-फूस से बनी झोपड़ी। सुविधाएँ तो दूर की बात थी; अक्सर पढ़ाई के लिए दीये की छोटी-सी रोशनी ही पर्याप्त होती थी। माँ ने हमेशा कहा—“बेटी, हालातों से मत हारना।” शायद इसी वजह से हर सुबह मेरे साथ एक नया जोश जुड़ जाता था।
कुछ हटकर सोचने की शुरुआत
गाँव के पास खेतों में गेहूं की मड़ाई के वक्त जब भी थ्रेशर की घनघनाहट सुनती थी, किसान और मजदूर खांसते हुए दिखते थे। मैंने सोचा—क्या कोई रास्ता नहीं कि ये धूलें उनके फेंफड़ों तक न पहुंचे? तब दिमाग में एक आइडिया आया—ऐसी मशीन बनाऊंगी जिससे उड़ती धूल एक थैले में चली जाए!
पहला कदम—Inspire Award MANAK
स्कूल की टीचर ने मेरा मॉडल देखकर उत्साह बढ़ाया। मैंने अपनी मेहनत से “धूल रहित थ्रेशर” तैयार किया और विज्ञान मेले में पेश किया। जब मेरा नाम Inspire Award MANAK के लिए चुना गया, मेरे लिए वो सपना सच होने जैसा था। गांव की पहली लड़की, जिसे ये सम्मान मिला—माँ की आँखों से बहते आँसू मेरी मेहनत की सच्ची जीत थे।
जापान का सफ़र—कल्पना से परे
Inspire Award की वजह से मुझे सकुरा साइंस एक्सचेंज प्रोग्राम में जापान के टोक्यो यूनिवर्सिटी तक जाने का मौका मिला। पहली बार हवाई जहाज में बैठी, बड़े-बड़े लैब देखे, विज्ञान के नए आयाम सीखे। वहाँ हर कदम पर लगता था—अगर मैंने हार मानी होती, तो क्या यह कभी संभव था?
सपनों से बड़ी कोई मंज़िल नहीं
मेरी कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं। आज मैं आगे पढ़ाई कर रही हूँ और चाहती हूँ कि गाँव के हर बच्चे को वही हौसला मिले जो मुझे मेरे माता-पिता और शिक्षकों से मिला। मेरा विश्वास है—संसाधनों की कमी आपके सपनों को नहीं रोक सकती, हौसले मजबूत हों तो हर कठिनाई छोटी लगती है।
सीख और प्रेरणा
मुश्किलें आएंगी, पर अगर उनके सामने डटे रहो, तो कामयाबी जरूर मिलेगी।
परिवार और अपने टीचरों का साथ सबसे बड़ा संबल है।
विज्ञान सिर्फ किताबों तक नहीं, हमारे आसपास की समस्याओं का हल है।
पूजा की हर सुबह एक नयी चुनौती लेकर आती थी। बारिश के मौसम में जब झोपड़ी की छत से पानी टपकता, तो किताबों को भीगने से बचाने के लिए वे जल्दी से उन्हें प्लास्टिक में लपेट देती थीं। कई बार भूख भी इतनी तेज़ लगती थी कि पढ़ाई पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता, मगर माँ की कही एक बात—“पढ़ाई से ही ज़िंदगी बदल सकती है”—हर मुश्किल वक़्त में उनका सहारा बनी रही।
पाँच भाई-बहनों के परिवार में पूजा सिर्फ़ बड़ी बहन ही नहीं बल्कि जिम्मेदार सहारा भी बनीं। जब माँ सुबह स्कूल के लिए निकलतीं, तब पूजा छोटे भाई-बहनों को नहला-धुलाकर स्कूल भेजतीं, पशुओं की देखभाल करतीं और चारा काटने में भी मदद करती थीं। स्कूल से आने के बाद जब वे अपने साइंस प्रोजेक्ट पर काम करतीं, तो झुग्गी के अंधेरे को चीरता हुआ उनका सपना भीतर से रोशनी देता।
पूजा को धूल रहित थ्रेशर का मॉडल बनाने में कई असफलताएँ झेलनी पड़ीं। कई बार प्रयोग फेल हो गया, लेकिन वह हर बार फिर से कोशिश करती रहीं। अपने अध्यापक राजीव श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे उन्होंने पंखे, जाली, टीन और घर की बेकार चीज़ों से एक ऐसा मॉडल बना लिया, जो किसी भी पेशेवर यंत्र से कम नहीं था।
यह मॉडल सिर्फ़ एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि उसके संघर्षों और समस्याओं का हल था—उन बुजुर्ग किसानों के लिए राहत, उन स्कूल के बच्चों के लिए एक सुरक्षित सांस, और पर्यावरण के लिए एक नयी उम्मीद। आज जब उनके मॉडल को पेटेंट कराए जाने की प्रक्रिया चल रही है, पूजा का सपना अब अपने गांव तक सीमित नहीं, बल्कि वह चाहती हैं कि देश के हर गाँव में किसान और बच्चे उसकी खोज का लाभ उठा सकें।
जापान पहुंचकर पूजा को महसूस हुआ कि अगर गाँव की झोपड़ी में बैठकर वह अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँच सकती हैं, तो गांव के हर बच्चे में वह काबिलियत है—बस हिम्मत, मेहनत और सही दिशा की जरूरत है। आज भी उनके घर में बिजली का मीटर तो लग गया है, लेकिन तार खरीदने के पैसे नहीं हैं। फिर भी पूजा मुस्कुराती हैं और कहती हैं, “बिजली की रौशनी देर से आई, मगर जज़्बे की रौशनी कभी कम नहीं होने दूँगी।”
अब पूजा का सपना है कि वो अपने गांव के बच्चों को विज्ञान की ओर प्रेरित करे, ताकि और भी पूजा, इस मिट्टी से निकलकर, देश और दुनिया का नाम रोशन करें। उनकी कहानियां किसी कोने में छुप न जायें, बल्कि हर घर तक पहुंचें और नयी रौशनी दें।
अंतिम पंक्तियाँ
मैं पूजा, बाराबंकी की बेटी, हर उस घर तक अपनी कहानी पहुंचाना चाहती हूँ जहाँ बेटियों को सपने देखने से रोका जाता है। मेरा सफर बताता है—अगर सच्ची लगन हो तो झोपड़ी से निकलकर जापान तक पहुँचना भी मुमकिन है।
“सपनों की कोई सीमा नहीं होती, बस उन्हें पंख देने की हिम्मत चाहिए।